दुनिया के सबसे घातक राइफल्स में शामिल AK-203 की क्या हैं खूबियां?


बीते कुछ सालों में रक्षा मंत्रालय ने सैन्य हथियारों और उपकरणों के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई कदम उठाये हैं। अब तक 2000 से अधिक सैन्य उपकरणों के आयात पर रक्षा मंत्रालय पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगा चुका है, ताकि इन उपकरणों का निर्माण देश में ही किया जा सके। हाल ही में आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए एक इंडो-रशियन ज्वाइंट वेंचर ने उत्तर प्रदेश के अमेठी में कलाश्निकोव एके-203 असॉल्ट राइफलों का निर्माण शुरू कर दिया है। इंडो-रशियन राइफल प्राइवेट लिमिटेड भारत में पंजीकृत कंपनी है जोकि रूसी कंपनी रोस्टोक स्टेट कॉर्पोरेशन के सहयोग में काम करती है। यह कंपनी AK-203 राइफल समेत कई सारे रक्षा उपकरणों का उत्पादन करती है।
एके-203 असॉल्ट राइफल के बारे में जानने से पहले AK सीरीज के हथियारों के बारे में समझ लेते हैं। AK का पूरा नाम है एवतोमेत कलाश्निकोव (Avtomat Kalashnikov) है। जिसे आम तौर पर कलाश्निकोव बुलाया जाता है। द्वितीय विश्व युद्ध के समय टैंक कमांडर रहे मिखाइल कलाश्निकोव एक सीनियर सार्जेंट थें। जिन्होंने AK सीरीज की ऐसी राइफल बनायी जो बिना फंसे लगातार किसी भी मौसम और जगह पर गोलियां बरसा सकें। इन्हीं के नाम पर इस राइफल का नाम कलाश्निकोव रखा गया। वर्ष 1947 में AK-47 का सबसे पहला मिलिट्री ट्रायल हुआ। तब से अब तक इसके 17 वर्जन आये हैं। इस सीरीज की सबसे पहली राइफल AK-47 है। 
एके-203 असॉल्ट राइफल इसी एके सीरीज की अत्याधुनिक घातक राइफल है। AK-203 राइफल्स का पहला प्रोटोटाइप साल 2007 में AK-200 के नाम से आया था। AK-203 राइफल वज़न में हल्की और घातक होती हैं। ये लगभग 3.8 किलोग्राम वज़न की और 705 मिलीमीटर लम्बी होती हैं। कम वजन और कम लम्बाई होने की वजह से AK-203 असॉल्ट राइफल की हैंडलिंग आसान होगी और इस राइफल को लम्बे समय तक ढोया जा सकेगा। जिसके चलते सेना के जवानों को थकान कम होगी। 
INSAS या इंडियन स्मॉल आर्म्स सिस्टम पैदल सेना के हथियारों की एक फैमिली है जिसमें एक असॉल्ट राइफल और एक लाइट मशीन गन (LMG) होती है। AK-203 इंसास (INSAS) से कई मामलों में बेहतर, आसान और घातक है। जैसे इंसास में 5.56x45mm जबकि AK-203 में 7.62x39mm की बुलेट्स लगती हैं, जो ज्यादा घातक होती हैं। इंसास की मारक रेंज 400 मीटर की तुलना में AK-203 की रेंज 800 मीटर है। AK-203 सेमी-ऑटोमेटिक या ऑटोमेटिक मोड में चलती है जबकि INSAS सिंगल शॉट और तीन- राउंड का बर्स्ट फायर। जहां AK-203 700 बुलेट मारती है वहीं इंसास एक मिनट में 650 गोलियां दाग सकती है। कुल मिलाकर AK-203 राइफल के आने से भारतीय हथियार  इंसास  का इस्तेमाल बंद हो सकता है या फिर इसके इस्तेमाल में कमी आएगी। 
सवाल उठता है कि इसको भारत में ही बनाने का क्या फायदा है यानी से आयात भी तो किया जा सकता था? भारत में इस राइफल का निर्माण होने से देश को कई लाभ होंगे। सबसे पहले तो देश में इसका निर्माण होने से सेना के जवानों को इन राइफलों की आपूर्ति काफी कम समय में हो पायेगी। इसके अलावा, इसके आयात में होने वाले व्यय में कमी आएगी और देश के युवाओं के लिए डिफेन्स सेक्टर में रोज़गार के नए अवसर प्राप्त होंगे।
बहरहाल मार्च महीने तक 5 हजार कलाश्निकोव असॉल्ट राइफल्स सेना के पास पहुंच जाएंगी। 2025 तक 70 हजार AK-203 राइफल्स को भारतीय सेना को सौंप दिया जाएगा। वहीं अगले 10 सालों में 6 लाख 1 हजार 427 राइफल्स बनाई जाएंगी।

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