Marital rape: अविवाहित महिलाओं के गर्भधारण पर, सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला

    “किसी अविवाहित महिला को सुरक्षित गर्भपात के अधिकार से वंचित करना उसकी व्यक्तिगत स्वायत्तता और स्वतंत्रता का उल्लंघन है" - यह कहना है सुप्रीम कोर्ट का। दरअसल हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक अविवाहित महिला को 24 सप्ताह की अवधि के गर्भपात की अनुमति देते हुए ये फैसला सुनाया। 

दरअसल एक 25 वर्षीय अविवाहित गर्भवती महिला ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी कि उसे सुरक्षित गर्भपात कराने की इजाजत दी जाए। इस महिला को 24 सप्ताह का गर्भ था जो कि अपने रिश्ते के विफल होने के बाद यह गर्भपात कराना चाहती थी। दिल्ली हाईकोर्ट ने उसकी याचिका को यह कहकर खारिज कर दिया कि गर्भावस्था की चिकित्सा समाप्ति नियम 2003, अविवाहित महिलाओं को कवर नहीं करता है। हाईकोर्ट के इस आदेश के खिलाफ महिला ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (MTP Act) एक्ट 1971 के सेक्शन 3 को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। दरअसल इस सेक्शन में 20 सप्ताह के भ्रूण के बाद केवल 7 प्रकार की महिलाओं को गर्भपात की अनुमति दी गई है और इसमें अविवाहित महिलाओं को कवर नहीं किया गया था।

इस महिला की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने माना कि एक अविवाहित महिला को सुरक्षित गर्भपात के अधिकार से वंचित करना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उसकी व्यक्तिगत स्वायत्तता और स्वतंत्रता का उल्लंघन है। अतः सभी महिलाओं - चाहे वह विवाहित हो या फिर अविवाहित - उन्हें सुरक्षित और कानूनी गर्भपात का अधिकार है। इस ऐतिहासिक फैसले में शीर्ष कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी यानि (MTP) एक्ट के तहत अब अविवाहित महिलाएं भी 24 हफ्ते तक का गर्भपात करा सकेंगी। सुप्रीम कोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी रूल्स यानि MTP के नियम 3B का विस्तार किया है। 20 हफ्ते से अधिक और 24 हफ्ते से कम के भ्रूण के गर्भपात का अधिकार अब तक सिर्फ विवाहित महिलाओं को था। सुप्रीम कोर्ट ने इसे समानता के अधिकार (अनुच्‍छेद 14) के खिलाफ माना है। 

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में निचली अदालतों के फैसले को अनुचित ठहराया। निचली अदालत को फटकार लगाते हुए बेंच ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप को सुप्रीम कोर्ट पहले ही मान्यता दे चुका है। कानून का इस्तेमाल सामाजिक नैतिकता की धारणा को सीमित करने के लिए नहीं किया जा सकता। यह एक संयोग ही था कि जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया उस दिन अंतरराष्ट्रीय सुरक्षित गर्भपात दिवस भी था। 

कोर्ट ने यह भी कहा है कि अगर विवाहित महिला का गर्भ उसकी इच्छा के विरुद्ध है तो इसे बलात्कार की तरह देखते हुए उसे गर्भपात की अनुमति दी जानी चाहिए। शादी के बाद यदि महिला की मर्जी के खिलाफ शारीरिक संबंध बनाया जाता है तो यह भी रेप की श्रेणी में आएगा। ‘मैरिटल रेप’ की दशा में भी 24 सप्ताह की तय सीमा में पत्नी गर्भपात करा सकती है। 

अदालत ने स्पष्ट बताया कि 2021 में MTP अधिनियम में जो संशोधन किया गया था उसमें पति शब्द की जगह ‘पार्टनर’ शब्द का इस्तेमाल किया गया। इससे जाहिर होता है कि यह कानून अविवाहित महिलाओं पर भी लागू होता है। अदालत ने कहा कि एक महिला को उसकी इच्छा के विरुद्ध गर्भावस्था जारी रखने के लिए मजबूर करना न केवल उसकी शारीरिक अखंडता का उल्लंघन होगा, बल्कि इससे उसकी मानसिक पीड़ा भी बढ़ेगी।

साल 1971 में जब एमटीपी अधिनियम बनाया गया था, तो यह काफी हद तक विवाहित महिला से संबंधित था। लेकिन जैसे-जैसे सामाजिक मानदंड और रीति-रिवाज बदलते हैं, उसी हिसाब से कानून में भी बदलाव होना चाहिए। प्रावधानों की व्याख्या करते समय बदलते सामाजिक रीति-रिवाजों को ध्यान में रखा जाना चाहिए। सामाजिक वास्तविकताएं कानूनी रूप से गैर-पारंपरिक पारिवारिक संरचनाओं को पहचानने की आवश्यकता को इशारा करती हैं।

भारतीय दंड संहिता की धारा 312 के मुताबिक जो भी कोई गर्भवती स्त्री का स्वेच्छा से गर्भपात करेगा और यदि ऐसा गर्भपात उस स्त्री का जीवन बचाने के प्रयोजन से न किया गया हो, तो उसे 1 से 3 साल का कारावास, या आर्थिक दण्ड, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा। इस बारे में अन्य वैधानिक प्रावधान भी हैं जैसे कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) MTP अधिनियम 2021 के अनुसार, 20 सप्ताह तक के गर्भधारण को एक डॉक्टर की राय में समाप्त किया जा सकता है। 20 से 24 सप्ताह के बीच गर्भधारण के लिए संशोधित कानून में दो डॉक्टरों की राय की आवश्यकता होती है।

यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फ़ंड के एक रिपोर्ट के मुताबिक असुरक्षित गर्भपात की वजह से भारत में हर दिन औसतन आठ महिलाओं की मौत होती है। रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि वर्ष 2007 से 2011 के बीच भारत में हुए 67 फ़ीसदी गर्भपात असुरक्षित थे। इन आंकड़ों से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि सुरक्षित गर्भपात के लिहाज से सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कितना अहम है। इस फैसले के बाद उम्मीद है कि अब आने वाले समय में कोई महिला 24 सप्ताह तक के गर्भ को सुरक्षित तरीके से गिराना चाहती है तो उसे राहत मिलेगी। साथ ही, आने वाले समय में इस कानून में अविवाहितों के लिए भी स्पष्ट प्रावधान होंगे। यह अधिकार उन महिलाओं के लिए राहतकारी होगा, जो अनचाहे गर्भ को जारी रखने को विवश हैं।


Comments

Popular posts from this blog

लाउडस्पीकर बजाने की तय हुई समय सीमा

उन्नाव कांड

World Heritage Day 2023: Theme, History, Significance, and Importance of Celebrating Cultural Heritage