artificial rain: कृत्रिम बारिश क्या है? चीन कृत्रिम वर्षा क्यों करा रहा है ।
:- बारिश का मौसम जब आता है तो अपने साथ बड़ी खुशियां लाता है। धरती बहुत ही सुंदर दिखने लगती है, ऐसे लगता है कि कोई नया जीवनदान मिल गया हो। खेतों में फसल हरी-भरी हो जाती है। सबसे ज्यादा किसान को बारिश का इंतजार रहता है, क्योंकि किसान की आय का साधन ही फसल होता है। इसके अलावा, जीव, जंतु, पशु, पक्षी, इंसान, पेड़, पौधे सभी को बरसात की आवश्यकता रहती है। अब आप कल्पना कीजिए कि अगर यह बारिश बंद हो जाए और चारों तरफ सूखा ही सूखा हो तो इन पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं और हम इंसानों का क्या हश्र होगा। कुछ ऐसा ही हो रहा है इस वक्त हमारे पड़ोसी देश चीन में। हालात ऐसे हो गए हैं कि वहां पर सरकार को कृत्रिम बारिश करानी पड़ रही है।
चीन में इस बार 40% कम बारिश हुई है। यह साल 1961 के बाद से सबसे कम है। ऊपर से लगातार गर्मी बढ़ रही है। चीन के कई शहरों में तापमान 49 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। गर्मी के चलते बिजली की खपत भी बढ़ गई तो हाइड्रोपावर से बनने वाली बिजली का उत्पादन घट गया। गर्मी का असर खेती पर भी पड़ा है। खेती के लिए पानी की मांग बढ़ गई है। नदियों से सिंचाई के लिए ज्यादा पानी लिया गया। इसके चलते चीन में मौजूद एशिया की सबसे लम्बी नदी यांग्त्जी कई जगह पर पूरी तरह से सूख गई है। इसके अलावा 66 अन्य नदियां भी पूरी तरह से सूख गईं हैं। मज़बूर होकर चीन को कई जगहों पर कृत्रिम बारिश करानी पड़ रही है।
आमतौर पर प्राकृतिक रूप से वर्षा तब होती है जब सूरज की गर्मी बहुत ज्यादा हो जाती है और समुद्र और नदियों का पानी सूरज की गर्मी से भाप या गर्म हवा बन कर ऊपर उठ जाता है। गरम होने पर हवा धीरे-धीरे हल्की हो जाती है। हल्की होने के बाद हवा ऊपर उठती है और इसका दबाव कम हो जाता है। जिसकी वजह से आसमान की एक ऊंचाई पर पहुंचने के बाद वह धीरे-धीरे ठंडी होने लगती है। ठंडी हवाओं के झोंकों से हवा में नमी बढ़ जाती है और उसमें मौजूद नमी बारिश की बूंदे बनकर हवा में तैरने लगते हैं जो गुरुत्वाकर्षण बल के कारण बारिश के रूप में नीचे गिरना शुरू हो जाती हैं। इसे हम सामान्य वर्षा कहते हैं ।
देखिये अभी हमने जो समझा वो प्राकृतिक बारिश की प्रक्रिया थी। लेकिन कभी-कभी बारिश के मौसम में भी बारिश नहीं होती और सूखा पड़ जाता है। इसकी वजह से पूरी की पूरी फसलें तबाह हो जाती हैं। ऐसे में वैज्ञानिक कृत्रिम वर्षा यानि आर्टिफीसियल वर्षा का सहारा लेते हैं। इस प्रक्रिया में कुछ खास तकनीक की मदद से बारिश वाली वहीँ प्राकृतिक प्रक्रिया कृत्रिम रूप से कराइ जाती है।
पहली बार कब कराई गई थी कृत्रिम बारिश और भारत में इसका प्रयोग पहली बार कब हुआ था?
क्लाउड सीडिंग का सबसे पहला प्रदर्शन फरवरी 1947 में ऑस्ट्रेलिया के बाथुर्स्ट में हुआ था। भारत में क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयोग साल 1951 में हुआ था। भारत में क्लाउड सीडिंग का प्रयोग सूखे से निपटने और डैम का वाटर लेवल बढ़ाने में किया जाता रहा है। भारत में इसे किसानों की आम बोलचाल की भाषा में ‘सरकारी वर्षा’ भी कहा जाता है।
दरअसल कृत्रिम बारिश कराना एक वैज्ञानिक प्रक्रिया है। दुनिया के तमाम देशों में कृत्रिम बारिश कई तरीकों से होती रही है। पुरानी और सबसे ज्यादा प्रचलित तकनीक में विमान या रॉकेट के जरिए ऊपर पहुंचकर बादलों में सिल्वर आयोडाइड मिला दिया जाता है। सिल्वर आयोडाइड प्राकृतिक बर्फ की तरह ही होती है। इसकी वजह से बादलों का पानी भारी हो जाता है और बरसात हो जाती है। इसे क्लाउड सीडिंग कहा जाता है। किसानों की आम बोलचाल की भाषा में इसे ‘सरकारी वर्षा’ भी कहा जाता है। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि कृत्रिम बारिश के लिए बादल का होना जरूरी है। बिना बादल के क्लाउड सीडिंग नहीं की जा सकती। बादल बनने पर सिल्वर आयोडाइड का छिड़काव किया जाता है। इसकी वजह से भाप पानी की बूंदों के रुप में परिवर्तित हो जाती है। इनमें भारीपन आ जाता है और ग्रैविटी की वजह से ये धरती पर गिरती हैं। ग़ौरतलब है कि मॉनसून से पहले और इसके दौरान कृत्रिम बारिश कराना आसान होता है। लेकिन सर्दियों के मौसम में ये आसान नहीं होती, क्योंकि इस दौरान बादलों में नमी की मात्रा ज्यादा नहीं होती।
हाँ ... इसके कुछेक तरीके और भी हैं जैसे कि बादलों को इलेक्ट्रिकली चार्ज करके भी बारिश कराई जा सकती है। उदाहरण के तौर पर पिछले साल जुलाई में भारी गर्मी से परेशान संयुक्त अरब अमीरात ने ड्रोन के जरिए बादलों को इलैक्ट्रिक चार्ज करके अपने यहां कृत्रिम बारिश कराई थी। हालांकि ये बारिश कराने की नई तकनीक है। इसमें बादलों को बिजली का झटका देकर बारिश कराई गई थी। इलैक्ट्रिक चार्ज होते ही बादलों में घर्षण हुआ और दुबई और आसपास के शहरों में जमकर बारिश हुई थी ।
गर्मी का बहुत अधिक बढ़ जाना, सूख रहे फसलों और जीव जंतुओं को बचाने के लिए, आर्थिक नुकसान को कम करने और वायु प्रदूषण को कम करने के लिए कृत्रिम बारिश बहुत सहायक होती है। लेकिन हमें ध्यान रखना होगा कि प्रकृति ने बारिश करने की जो व्यवस्था अपने आप बनाई है, वह अमूमन जमीन और पूरे वातावरण को सेहतमंद बनाती है। लेकिन स्थान की प्रवृत्ति, हालात और जरूरत को समझे बिना आनन-फानन में कृत्रिम बारिश कराना नुकसानदेह भी साबित हो सकता है। इसके अलावा, भले ही फसलों को बचाने के लिए कृत्रिम बारिश का इस्तेमाल किया जाता है परंतु कृत्रिम बारिश में इस्तेमाल की जाने वाली सिल्वर एक जहरीली धातु है जो वनस्पति और जीवो को धीरे धीरे गहरा नुकसान पहुंचा सकती है। एक और चीज हमें दिमाग में रखना होगा कि अलग-अलग इलाकों में बादलों की बनावट अलग-अलग होती है। चीन में कृत्रिम बारिश कराने के तौर-तरीकों को लेकर खास तौर से इसीलिए सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि इससे गैस चैंबर में बदल चुके शहरों में कोई बारिश सामान्य वर्षा न रहकर एसिड रेन में बदल जाती है जो ज्यादा नुकसानदेह साबित होती है।
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